लोगों की राय

बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - दीक्षा

राम कथा - दीक्षा

नरेन्द्र कोहली

प्रकाशक : हिन्द पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :182
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 6497
आईएसबीएन :21-216-0759-0

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

314 पाठक हैं

राम कथा पर आधारित उपन्यास, प्रथम सोपान

तीन

 

देवराज इन्द्र आश्रम के द्वार पर स्वागत करती हुई अहल्या को देखते ही, बुरी तरह विचलित हो गया था। वह भूल गया कि वह इंद्र है-आर्य ऋषियों का पूज्य अभ्यागत, जिससे सच्चरित्रता की कुछ विशेष अपेक्षाएं हैं। वह भूल गया कि वह यहां आमंत्रित होकर आया है; और यह आर्यावर्त का एक पवित्र आश्रम है। अहल्या इस आश्रम के कुलपति की धर्म-पत्नी है; और वह अपने पति के प्रति पूर्णतः निष्ठावान है।

वह सब कुछ भूल गया। याद रहा केवल मन का चीत्कार-कामुक मन का चीत्कार! स्वागत् के पश्चात विदा होते हुए उसने अहल्या पर अपने बैभव का जाल फेंका था और उसे अपने एक वाक्य से याद दिलाया था कि अत्यन्त रूपवती स्त्री होते हुए भी, वह एक कंगाल ऋषि से बंधी हुई, व्यर्थ ही इस वन में कष्ट उठा रही है। भला ऐसी अद्वितीय सुन्दरी का वैभव, समृद्धि तथा विलास के उपकरणों से वंचित, इस प्रकार इस वन में पड़े रहने का क्या अर्थ है? भला ऐसी सुन्दरी के महत्व को कोई जड़ ऋषि क्या समझेगा? उसका आनन्द तो काम-कला-प्रवीण इन्द्र जैसा कोई समृद्ध और वैभवशाली व्यक्ति ही उठा सकता है। ऋषि को संतान उत्पन्न करने के लिए कोई स्त्री चाहिए ही, तो इंद्र उसे अपनी कोई साधारण दासी दे देगा।

किंतु, अहल्या का उत्तर उसके लिए तनिक भी उत्साहवर्धक नहीं था। पहले, ऐसे अनेक अवसरों पर, अनेक रूपसी युवतियों के मुख से, विलासाकांक्षा की लार टपक पड़ी थी; किंतु इंद्र ने स्पष्ट देखा था कि उसकी बात सुनकर अहल्या उल्लसित होने के स्थान, कहीं आहत हो गई थी।, पर उससे क्या? इंद्र क्या ऐसी असाधारण सुंदरी को प्राप्त करने का मोह केवल इसलिए छोड़ देगा कि वह सुंदरी एक साधारण जड़, कंगाल ऋषि की पत्नी है और उससे प्रेम करती है। इंद्र इतना मूर्ख नहीं है...

इंद्र के मन में एक बार उपस्थित ऋषियों का भय जागा। वे लोग उससे रुष्ट हो सकते हैं। क्रुद्ध होकर उसे शाप भी दे सकते हैं। शाप...और इंद्र का मन भीतर-ही-भीतर कहीं उपहास की हंसी हंस पड़ा। इन बुद्धिजीवियों ने भी शासन से पृथक् अपनी स्वतंत्र सत्ता बनाए रखने के लिए, एक-से-एक विचित्र युक्तियां सोच निकाली हैं। शाप...जो दंड शासन दे, वह दंड; और जो दंड कोई बुद्धिजीवी किसी को दे, वह शाप! किंतु प्रत्येक शासन के पास दंड को कार्यान्वित कराने के लिए भौतिक बल होता है, उपकरण होता है; पर यदि शासन इनको संरक्षण न दे तो इन ऋषियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति है, जिससे वे अपने शापों को कार्यान्वित करा सकें?

प्रत्येक शासन ने इन ऋषियों को महत्व दिया था कि ये लोग सामान्य-जन के विरुद्ध, शासन का पक्ष ले और जन-सामान्य के शोषण तथा दलन में शासन के सहायक हों, नहीं तो इन्हें इतना आदर-मान देने की सार्थकता ही क्या है। किसी भी शासन में जब तक बुद्धिजीवी लोग शासन का साथ देते हैं, तब तक शासन कितने सुचारु रूप से चलता है। शासक प्रजा के शरीर पर शासन करता है, बुद्धिजीवी उसके मन को बहकाए रखता है। प्रजा न तो अपनी दयनीय स्थिति, अपने शोषण के प्रति जागरूक होती है, न अपने अधिकारों के प्रति सचेत। कहीं कोई उपद्रव नहीं होता। सब ओर शांति बनी रहती है। इस उपद्रवहीन स्थिति में, शासक सुखी रहता है, और अनेक प्रकार के उत्कोच एवं सुविधाएं देकर इन बुद्धिजीवी ऋषियों को भी प्रसन्न रखता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रथम खण्ड - एक
  2. दो
  3. तीन
  4. चार
  5. पांच
  6. छः
  7. सात
  8. आठ
  9. नौ
  10. दस
  11. ग्यारह
  12. द्वितीय खण्ड - एक
  13. दो
  14. तीन
  15. चार
  16. पांच
  17. छः
  18. सात
  19. आठ
  20. नौ
  21. दस
  22. ग्यारह
  23. बारह
  24. तेरह

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book